मानस में बहुरंगी भक्ति रस

 मानस में बहुरंगी भक्ति रस

मानसकार ने भक्ति को अपने काव्य का आधार बनाया है और इसलिये उसे रस दशा तक पहुँचाने की पूरी चेष्टा की है। इस चेष्टा मे उन्होने एक और भक्ति को उसके बहुमुखी रूप मे ग्रहण किया है तो दूसरी ओर उसका लौकिक भावों के साथ अधिकाधिक साम्य करने का प्रयत्न किया है। 

 अद्भुतमूलक भक्ति रस

मानस मे भक्ति की बहुमुखी छटा देखने को मिलती है। सती-मोह के साथ ही भक्ति के अद्भुत रूप का बीज पड जाता है। इसी अद्भुतमूलक भक्ति की अभिव्यक्ति कौशल्या व्यामोह के प्रसंग में की गई है। खर दूषण वध और कागभुशुण्डि के आत्मचरितवर्णन के अवसर पर भी भक्ति का  अद्भुतमूलक पक्ष ही सामने आता है। उपर्युक्त प्रसंगों मे राम के व्यक्तित्व की अद्भुतता से अभिभूत कर उनके ईश्वरत्व की प्रतिष्ठा कवि का उद्देश्य रहा है ,पर श्रद्धालु पाठक उस से अभिभूत होकर जब राम की अद्भुतता पर मुग्ध होने लगते है तब कवि की भक्ति भावना से तादात्म्य की सिद्धि के साथ रामभक्ति का साधारणीकरण हो जाने से भक्तिभाव रस रूप मे निष्पत हो जाती है। तुलसीदास जी के अनेक समीक्षको ने इन प्रसंगों को अद्भुत रस के अन्तर्गत माना है. किन्तु वास्तविकता यह है कि यह  अद्गुत भक्तिरस का पोषक है, स्वतन्त्र रस नहीं, कवि का प्रयोजन राम की  अद्भुतता के प्रदर्शन द्वारा उनके प्रति श्रद्धा उत्पन्न करना है ओर वह इसमे सफल रहा है।

डाक्टर जगदीश शर्मा




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