भयमूलक भक्ति

 भयमूलक भक्ति

मानस मे भयमूलक भक्ति के दर्शन भी होते है । जयंत और मंदोदरी की भक्ति इस प्रकार की है। भक्ति में अनुरक्ति मूलक रस है और इसलिये भयानक से उसका सहज विरोध है । जयंत प्रसंग में भयानक की प्रबलता से भक्तिरस दब गया। इसके विपरित मंदोदरी की भक्ति में भय का अंश क्षीण और राम के ईश्वरत्व की चेतना प्रबल होने से राम के प्रति निरंतर अनुरक्ति बनी रही है, फिर भी भक्ति के रूप में मदद की प्रतिनायक  अनुरक्ति (मदोदरी के लिये राम प्रतिनायक हैं। ) व्यक्त होने से उनकी भक्ति रसाभास के रूप में प्रकट हुई है। मंदोदरी की प्रति नायक निष्टा रावणवध के उपरान्त उसके विलाप में चरम सीमा पर पहुंची हुई प्रतीत होती है। राम के प्रति शत्रु पत्नी की यह अनुरक्ति यथार्थ प्रतीत नहीं होती। इसलिये यह भावाभास के स्तर तक ही पहुंच पायी है। इसी प्रकार रावण की रामभक्त भी भय के भाव से दब जाने के कारण रस रूप में व्यक्त नहीं हो सकी है।

डाक्टर जगदीश शर्मा




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