वात्सल्य मूलक भक्तिरस

 वात्सल्य मूलक भक्तिरस

तुलसीदास जी ने वात्सल्य का उपयोग भी भक्तिरस की पुष्टि के लिये किया है। दशरथ का वात्सल्य शुद्ध वात्सल्य नहीं है, वह भक्तिरस के साथ मिश्रित है और कुछ स्थलों पर तो वह भक्ति का अंग ही बन गया है। राजा दशरथ राम को विश्वामित्र को सौंपने मे हिचकिचाहट प्रकट करते है विश्वामित्र उनके इन पुत्र प्रेम  को भक्ति के रूप में देखते है। इस प्रसंग में  वात्सल्य और भक्ति परस्पर अंतर्लीन हो गये हैं । दशरथ की मृत्यु के अवसर पर भी लेखक ने जो भाव व्यञ्जना की है उसमे भी वात्सल्य और भक्ति इसी प्रकार अन्तर्मिश्रित  हैं । 'राम-राम' कहना एक और मृत्यु समय राम नाम उचारण की और संकेत करता है तो दूसरी और पुत्र वियोग में तपते हुए दशरथ के द्वारा पुत्र स्मरण सूचित करता है ।

युग्म-रूप मे रामानामोच्चारण मृत्यु  समय के ईश्वर चिंतन के रूप में प्रतीत होता है और एक बार राम कहना पुत्र स्मरण की ओर से संकेत करता जान पडता है। राजा दशरथ का पुत्र स्नेह उनकी भक्ति का ही अंग था ऐसा उल्लेख मानस मे एक स्थान पर मिलता अवश्य है । 

किन्तु प्रसंग की समग्रता में राजा दशरथ का पुत्र-स्मरण एकाततः भक्ति-का अंग नहीं माना जा सकता । कौसल्या का वात्सल्य भक्ति का अंग नही है । राम के ईश्वरत्व से वह अवगत अवश्य है, किन्तु उनका वात्सल्य भक्ति के साथ मिल नहीं पाया है। इसलिये कौसल्या को भक्ति की ओर प्रेरित करने के लिये कवि ने अद्भुत  रस का प्रयोग किया है |

डाक्टर जगदीश शर्मा







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