दास्य भाव भक्ति रस

दास्य भाव मूलक भक्ति रस

दास्य भाव के सम्बन्ध से भी मानसकार ने भक्तिरसपूर्ण प्रसंगों की सृष्टि की है। लक्ष्मण, भरत, सुग्रीव, अंगद ,हनुमान और विभीषण की भक्ति भावना प्राय  दास्य भक्ति के रूप में व्यक्त हुई है। इनमें से भरत और लक्ष्मण की भक्ति भावना भ्रातस्नेह से अन्तर मिश्रित है ।जब की अन्तिम चारों व्यक्तियों शुद्ध दास्य भक्ति है।

प्रश्न यह है क्या यह दास्य भक्ति रस कोटि में आ सकती है? रसपरिपाक की स्थिति तक पहुँच सकी है ? 

भरत और लक्ष्मण की  भातृत्वमिश्रिति भक्ति को शुद्ध भक्ति के अन्तर्गत  मानना उचित प्रतीत नहीं होता। 

 यह मानना अधिक उचित होगा कि उक्त प्रसंग में भ्रातत्व का परिवर्तन भक्ति में हुआ है। अतः यहां भ्रातत्व पुष्ट भक्ति रस माना जाता है। राम के प्रति भरत का अनुराग इसी प्रकार भ्रातत्व मिश्रित भक्ति का रूप ले लेता है। ये प्राय राम को स्वामी और अपने आप को  उनका सेवक मानते हुए एक स्थान पर राम के लिये दीनबंधु आदि शब्द का प्रयोग करते हैं। जिससे ऐश्वर्य बोध के साथ राम की अलौकिकता  के प्रति उनकी आस्था व्यक्त होती है, लेकिन सन्दर्भ की समग्रता में भ्रातत्व की अभिव्यक्ति अक्षुण्ण रहने से  यहां भ्रातत्व पुष्ट भक्ति रस मानना समीचीन होगा।

सुग्रीव, अंगद और हनुमान की भक्ति सम्यक रुप से व्यक्त नहीं हुई है।  वटु वेश में राम की जानकारी पाने के प्रयोजन से आये हनुमान का एकाएक भक्ति भाव से भर जाना, इसी प्रकार सुग्रीव की मैत्री का एकाएक दास्य में परिवर्तित हो जाना आदि भावनाये व्यवहारिक वातावरण की सहज परिणति के रूप में व्यक्त न होकर आरोपित प्रतीत होती है ।अतःएव यहां भक्ति रस निष्पन्न नहीं हो सका है। सम्यक विभाजन के अभाव में भक्ति स्थायी भाव उदबुध होकर रह गया है। अतः एवं भक्ति भाव स्तर तक ही रही है।

डाक्टर जगदीश शर्मा




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