अनुरक्तिमूलक भक्ति रस

 अनुरक्तिमूलक भक्ति रस

आश्चर्य के समान रति से भी मानह मे भक्ति रस का पोषण हुआ है और इसके लिये तुलसीदासजी ने प्रायः राम के सौन्दर्य अतिशय का अवलम्व ग्रहण किया है । मानसाकार ने राम के अलौकिक सौन्दर्य का उपयोग उनके प्रति मनुष्यों की ही नहीं, देवताओं की भक्ति के उद्बोधन के लिये भी किया है। उन्होंने राम के अद्भुत रूप पर ब्रह्मा, विष्णु और महेश को भी मुग्ध दिखलाया है। 

परम विरागी राजा जनक के मन में भी राम के सौन्दर्य को देखकर अनुराग उत्पन्न हो जाता।

 इतना ही नहीं, प्रतिपक्षियों तक को मानसकार ने राम के सौन्दर्य पर मुग्ध दिखलाया है । कट्टर क्षत्रिय-विरोधी परशुराम भी राम को देखते ही रह जाते हैं । खर-दूषण आदि राक्षस भी, जो राम पर आक्रमण करने आते हैं, उन्हें देखते ही रह जाते हैं, किन्तु वह राम के सौन्दर्य के प्रति राक्षसों को यह अनुरक्ति परिस्थिति एवं  अवसर के प्रतिकूल होने के कारण  आरोपित सी प्रतीत होती है और इसलिये वहां राक्षसों की भक्ति रस स्तर तक न पहुंचकर भावामास के स्तर तक ही रह जाती है, किंतु अन्य दो प्रसंगों में उनके रूप के अलौकिक प्रभाव को व्यंजना के माध्यम से कवि ने रति पुष्ट भक्तिरस की व्यंजना की है।

डाक्टर जगदीश शर्मा





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